मुख्यपृष्ठशायरी/गज़लरगों में दौड़ते फिरने के हम नहीं क़ायल जब आँख ही से न टपका तो फिर लहू क्या है / मिर्ज़ा ग़ालिब रगों में दौड़ते फिरने के हम नहीं क़ायल जब आँख ही से न टपका तो फिर लहू क्या है / मिर्ज़ा ग़ालिब 0 साहित्य सारथी नवंबर 12, 2024 रगों में दौड़ते फिरने के हम नहीं क़ायलजब आँख ही से न टपका तो फिर लहू क्या है Tags शायरी/गज़ल और नया पुराने