मुख्यपृष्ठशायरी/गज़लक़र्ज़ की पीते थे मय लेकिन समझते थे कि हाँ रंग लावेगी हमारी फ़ाक़ा-मस्ती एक दिन / मिर्ज़ा ग़ालिब क़र्ज़ की पीते थे मय लेकिन समझते थे कि हाँ रंग लावेगी हमारी फ़ाक़ा-मस्ती एक दिन / मिर्ज़ा ग़ालिब 0 साहित्य सारथी नवंबर 14, 2024 क़र्ज़ की पीते थे मय लेकिन समझते थे कि हाँ रंग लावेगी हमारी फ़ाक़ा-मस्ती एक दिन Tags शायरी/गज़ल और नया पुराने