नीरजा /प्रिय इन नयनों का अश्रु-नीर!

 प्रिय इन नयनों का अश्रु-नीर!

दुख से आविल सुख से पंकिल,
बुदबुद् से स्वप्नों से फेनिल,
बहता है युग-युग अधीर!

जीवन-पथ का दुर्गमतम तल
अपनी गति से कर सजल सरल,
शीतल करता युग तृषित तीर!

इसमें उपजा यह नीरज सित,
कोमल कोमल लज्जित मीलित;
सौरभ सी लेकर मधुर पीर!

इसमें न पंक का चिन्ह शेष,
इसमें न ठहरता सलिल-लेश,
इसको न जगाती मधुप-भीर!

तेरे करुणा-कण से विलसित,
हो तेरी चितवन में विकसित,
छू तेरी श्वासों का समीर!

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ
* Please Don't Spam Here. All the Comments are Reviewed by Admin.