वीरता और संवेदना की अमर आवाज: सुभद्रा कुमारी चौहान की “झाँसी की रानी”


वीरता और संवेदना की अमर आवाज: सुभद्रा कुमारी चौहान की “झाँसी की रानी”


एक शौर्य गाथा की तलाश


हमारी सांस्कृतिक धरोहर में कुछ ऐसे नाम हैं जो अपने शब्दों से इतिहास का पाठ पढ़ाते हैं। मेरे लिए, सुभद्रा कुमारी चौहान का नाम उनमें से एक है। उनकी कविताएँ न केवल उस दौर के समाज का जीवंत चित्रण करती हैं बल्कि आज के युग में भी हमें इंसानियत, साहस, और नारी शक्ति का संदेश देती हैं। उनके द्वारा रचित “झाँसी की रानी” कविता ने पहली बार पढ़ते ही मेरे भीतर एक गहरा प्रभाव छोड़ा, और हर बार पढ़ने पर यह कविता मेरे दिल में वही जोश और गर्व की भावना पैदा करती है।


कविता का परिचय: रानी लक्ष्मीबाई की वीरता

सुभद्रा कुमारी चौहान की यह कविता उस रानी की कहानी है जिसने न केवल एक राज्य की रक्षा की, बल्कि पूरे राष्ट्र को यह संदेश दिया कि साहस किसी भी रूप में और किसी भी परिस्थिति में उभर सकता है। इस कविता का एक अंश साझा कर रहा हूँ, जो हर भारतीय के दिल में जोश भरने का सामर्थ्य रखता है:


सिंहासन हिल उठे, राजवंशों ने भृकुटी तानी थी,

बूढ़े भारत में भी आई फिर से नई जवानी थी,

गुमी हुई आज़ादी की क़ीमत सबने पहचानी थी,

दूर फिरंगी को करने की सबने मन में ठानी थी,

 

चमक उठी सन् सत्तावन में

वह तलवार पुरानी थी।

बुंदेले हरबोलों के मुँह

हमने सुनी कहानी थी।

ख़ूब लड़ी मर्दानी वह तो

झाँसी वाली रानी थी॥

 

कानपूर के नाना की मुँहबोली बहन 'छबीली' थी,

लक्ष्मीबाई नाम, पिता की वह संतान अकेली थी,

नाना के संग पढ़ती थी वह, नाना के संग खेली थी,

बरछी, ढाल, कृपाण, कटारी उसकी यही सहेली थी,

 

वीर शिवाजी की गाथाएँ

उसको याद ज़बानी थीं।

बुंदेले हरबोलों के मुँह

हमने सुनी कहानी थी।

ख़ूब लड़ी मर्दानी वह तो

झाँसी वाली रानी थी॥

 

लक्ष्मी थी या दुर्गा थी वह स्वयं वीरता की अवतार,

देख मराठे पुलकित होते उसकी तलवारों के वार,

नक़ली युद्ध, व्यूह की रचना और खेलना ख़ूब शिकार,

सैन्य घेरना, दुर्ग तोड़ना, ये थे उसके प्रिय खिलवार,

 

महाराष्ट्र-कुल-देवी उसकी

भी आराध्य भवानी थी।

बुंदेले हरबोलों के मुँह

हमने सुनी कहानी थी।

ख़ूब लड़ी मर्दानी वह तो

झाँसी वाली रानी थी॥

 

हुई वीरता की वैभव के साथ सगाई झाँसी में,

ब्याह हुआ रानी बन आई लक्ष्मीबाई झाँसी में,

राजमहल में बजी बधाई ख़ुशियाँ छाईं झाँसी में,

सुभट बुंदेलों की विरुदावलि-सी वह आई झाँसी में,

 

चित्रा ने अर्जुन को पाया,

शिव से मिली भवानी थी।

बुंदेले हरबोलों के मुँह

हमने सुनी कहानी थी।

ख़ूब लड़ी मर्दानी वह तो

झाँसी वाली रानी थी॥

 

उदित हुआ सौभाग्य, मुदित महलों में उजयाली छाई,

किंतु कालगति चुपके-चुपके काली घटा घेर लाई,

तीर चलानेवाले कर में उसे चूड़ियाँ कब भाईं,

रानी विधवा हुई हाय! विधि को भी नहीं दया आई,

 

निःसंतान मरे राजाजी

रानी शोक-समानी थी।

बुंदेले हरबोलों के मुँह

हमने सुनी कहानी थी।

ख़ूब लड़ी मर्दानी वह तो

झाँसी वाली रानी थी॥

 

बुझा दीप झाँसी का तब डलहौज़ी मन में हरषाया,

राज्य हड़प करने का उसने यह अच्छा अवसर पाया,

फ़ौरन फ़ौजें भेज दुर्ग पर अपना झंडा फहराया,

लावारिस का वारिस बनकर ब्रिटिश राज्य झाँसी आया,

 

अश्रुपूर्ण रानी ने देखा

झाँसी हुई बिरानी थी।

बुंदेले हरबोलों के मुँह

हमने सुनी कहानी थी।

ख़ूब लड़ी मर्दानी वह तो

झाँसी वाली रानी थी॥

 

अनुनय-विनय नहीं सुनता है, विकट फिरंगी की माया,

व्यापारी बन दया चाहता था जब यह भारत आया,

डलहौज़ी ने पैर पसारे अब तो पलट गई काया,

राजाओं नव्वाबों को भी उसने पैरों ठुकराया,

 

रानी दासी बनी, बनी यह

दासी अब महरानी थी।

बुंदेले हरबोलों के मुँह

हमने सुनी कहानी थी।

ख़ूब लड़ी मर्दानी वह तो

झाँसी वाली रानी थी॥

 

छिनी राजधानी देहली की, लिया लखनऊ बातों-बात,

क़ैद पेशवा था बिठूर में, हुआ नागपुर का भी घात,

उदैपूर, तंजोर, सतारा, करनाटक की कौन बिसात,

जबकि सिंध, पंजाब, ब्रह्म पर अभी हुआ था वज्र-निपात,

 

बंगाले, मद्रास आदि की

भी तो यही कहानी थी।

बुंदेले हरबोलों के मुँह

हमने सुनी कहानी थी।

ख़ूब लड़ी मर्दानी वह तो

झाँसी वाली रानी थी॥

 

रानी रोईं रनिवासों में बेगम ग़म से थीं बेज़ार

उनके गहने-कपड़े बिकते थे कलकत्ते के बाज़ार,

सरे-आम नीलाम छापते थे अँग्रेज़ों के अख़बार,

'नागपूर के जेवर ले लो' 'लखनऊ के लो नौलख हार',

 

यों पर्दे की इज़्ज़त पर—

देशी के हाथ बिकानी थी।

बुंदेले हरबोलों के मुँह

हमने सुनी कहानी थी।

ख़ूब लड़ी मर्दानी वह तो

झाँसी वाली रानी थी॥

 

कुटियों में थी विषम वेदना, महलों में आहत अपमान,

वीर सैनिकों के मन में था, अपने पुरखों का अभिमान,

नाना धुंधूपंत पेशवा जुटा रहा था सब सामान,

बहिन छबीलीनेरण-चंडी का कर दिया प्रकट आह्वान,

 

हुआ यज्ञ प्रारंभ उन्हें तो

सोयी ज्योति जगानी थी।

बुंदेले हरबोलों के मुँह

हमने सुनी कहानी थी।

ख़ूब लड़ी मर्दानी वह तो

झाँसी वाली रानी थी॥

 

महलों ने दी आग, झोंपड़ी ने ज्वाला सुलगाई थी,

यह स्वतंत्रता की चिनगारी अंतरतम से आई थी,

झाँसी चेती, दिल्ली चेती, लखनऊ लपटें छाई थीं,

मेरठ, कानपूर, पटना ने भारी धूम मचाई थी,

 

जबलपूर, कोल्हापुर में भी

कुछ हलचल उकसानी थी।

बुंदेले हरबोलों के मुँह

हमने सुनी कहानी थी।

ख़ूब लड़ी मर्दानी वह तो

झाँसी वाली रानी थी॥

 

इस स्वतंत्रता-महायज्ञ में कई वीरवर आए काम

नाना धुंधूपंत, ताँतिया, चतुर अजीमुल्ला सरनाम,

अहमद शाह मौलवी, ठाकुर कुँवरसिंह सैनिक अभिराम,

भारत के इतिहास-गगन में अमर रहेंगे जिनके नाम,

 

लेकिन आज ज़़ुर्म कहलाती

उनकी जो क़ुर्बानी थी।

बुंदेले हरबालों के मुँह

हमने सुनी कहानी थी।

ख़ूब लड़ी मर्दानी वह तो

झाँसी वाली रानी थी॥

 

इनकी गाथा छोड़ चलें हम झाँसी के मैदानों में,

जहाँ खड़ी है लक्ष्मीबाई मर्द बनी मर्दानों में,

लेफ़्टिनेंट वॉकर आ पहुँचा, आगे बढ़ा जवानों में,

रानी ने तलवार खींच ली, हुआ द्वंद्व असमानों में,

 

ज़ख्मी होकर वॉकर भागा,

उसे अजब हैरानी थी।

बुंदेले हरबोलों के मुँह

हमने सुनी कहानी थी।

ख़ूब लड़ी मर्दानी वह तो

झाँसी वाली रानी थी॥

 

रानी बढ़ी कालपी आई, कर सौ मील निरंतर पार

घोड़ा थककर गिरा भूमि पर, गया स्वर्ग तत्काल सिधार,

यमुना-तट पर अँग्रेज़ों ने फिर खाई रानी से हार,

विजयी रानी आगे चल दी, किया ग्वालियर पर अधिकार,

 

अँग्रेज़ों के मित्र सिंधिया

ने छोड़ी रजधानी थी।

बुंदेले हरबोलों के मुँह

हमने सुनी कहानी थी।

ख़ूब लड़ी मर्दानी वह तो

झाँसी वाली रानी थी॥

 

विजय मिली, पर अँँग्रेज़ों की फिर सेना घिर आई थी,

अबके जनरल स्मिथ सन्मुख था, उसने मुँह की खाई थी,

काना और मंदरा सखियाँ रानी के सँग आई थीं,

युद्ध क्षेत्र में उन दोनों ने भारी मार मचाई थी,

 

पर, पीछे ह्यूरोज़ आ गया,

हाय! घिरी अब रानी थी।

बुंदेले हरबोलों के मुँह

हमने सुनी कहानी थी।

ख़ूब लड़ी मर्दानी वह तो

झाँसी वाली रानी थी॥

 

तो भी रानी मार-काटकर चलती बनी सैन्य के पार,

किंतु सामने नाला आया, था वह संकट विषम अपार,

घोड़ा अड़ा, नया घोड़ा था, इतने में आ गए सवार,

रानी एक, शत्रु बहुतेरे, होने लगे वार पर वार,

 

घायल होकर गिरी सिंहनी

उसे वीर-गति पानी थी।

बुंदेले हरबोलों के मुँह

हमने सुनी कहानी थी।

ख़ूब लड़ी मर्दानी वह तो

झाँसी वाली रानी थी॥

 

रानी गई सिधार, चिता अब उसकी दिव्य सवारी थी,

मिला तेज़ से तेज़, तेज़ की वह सच्ची अधिकारी थी,

अभी उम्र कुल तेइस की थी, मनुज नहीं अवतारी थी,

हमको जीवित करने आई बन स्वतंत्रता नारी थी,

 

दिखा गई पथ, सिखा गई

हमको जो सीख सिखानी थी।

बुंदेले हरबोलों के मुँह

हमने सुनी कहानी थी।

ख़ूब लड़ी मर्दानी वह तो

झाँसी वाली रानी थी॥

 

जाओ रानी याद रखेंगे हम कृतज्ञ भारतवासी,

यह तेरा बलिदान जगावेगा स्वतंत्रता अविनाशी,

होवे चुप इतिहास, लगे सच्चाई को चाहे फाँसी,

हो मदमाती विजय, मिटा दे गोलों से चाहे झाँसी,

 

तेरा स्मारक तू ही होगी,

तू ख़ुद अमिट निशानी थी।

बुंदेले हरबोलों के मुँह

हमने सुनी कहानी थी।

ख़ूब लड़ी मर्दानी वह तो

झाँसी वाली रानी थी॥

इस कविता का हर शब्द, हर पंक्ति रानी लक्ष्मीबाई के अदम्य साहस और उनके अद्भुत त्याग की कहानी कहता है। यह उस समय की भावना को सजीव कर देती है जब भारत माता के वीर सपूत और बेटियाँ अपनी धरती माँ की स्वतंत्रता के लिए बलिदान दे रहे थे। 


मेरा दृष्टिकोण: कवयित्री का संदेश और आज का समाज

सुभद्रा कुमारी चौहान की यह कविता सिर्फ अतीत की गाथा नहीं है, बल्कि यह हमें यह भी याद दिलाती है कि कैसे एक सच्चा नायक समाज में प्रेरणा की शक्ति बन सकता है। “झाँसी की रानी” की कहानी केवल एक वीर योद्धा की नहीं, बल्कि हर उस व्यक्ति की है जो न्याय के लिए, अपने अधिकारों के लिए, और अपने आत्मसम्मान के लिए खड़ा होता है। मैं यह मानता हूँ कि यह कविता आज के समय में भी उतनी ही प्रासंगिक है। हम सभी में कहीं न कहीं वह साहस छिपा है, बस जरूरत है उसे पहचानने और परिस्थितियों का सामना करने की।


हर बार जब मैं इस कविता को पढ़ता हूँ, तो मुझे ऐसा महसूस होता है जैसे यह कविता मुझे जीवन में कभी न हार मानने की प्रेरणा दे रही है। यह कविता हमें सिखाती है कि कैसे रानी लक्ष्मीबाई ने अपने संघर्षों को अपने उद्देश्य की शक्ति बनाया। यह सिखाती है कि चाहे विपरीत परिस्थितियाँ हों, लेकिन अगर इरादे मजबूत हों, तो सफलता आपके साथ होगी।


उनके शब्दों में हम सबकी कहानी

सुभद्रा कुमारी चौहान की रचनाएँ हमारे हृदय को यह एहसास कराती हैं कि हम सभी के भीतर एक झाँसी की रानी छिपी है। हमें बस अपने भीतर की उस मर्दानी को पहचानने और उसे शक्ति देने की आवश्यकता है। मुझे खुशी होगी अगर आप भी इस कविता से प्रेरित होकर अपनी राय साझा करें, या सुभद्रा कुमारी चौहान की अन्य कविताओं को पढ़ें। 

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