"कभी किसी को मुकम्मल जहाँ नहीं मिलता, कहीं ज़मीन तो कहीं आसमां नहीं मिलता / निदा फ़ाज़ली

"कभी किसी को मुकम्मल जहाँ नहीं मिलता,
कहीं ज़मीन तो कहीं आसमां नहीं मिलता।

जिसे भी देखिए वो अपने आप में गुम है,
ज़ुबाँ मिली है मगर हमज़ुबां नहीं मिलता।

बुझा सका है भला कौन वक्त के शोले,
ये ऐसी आग है जिसमें धुआँ नहीं मिलता।"

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